ट्रैक्ट्स
समस्त कहानियों के बीच यीशु मसीह के जन्म की कहानी मसीहियों के मन के सबसे निकट है । सारे युगों में यह एक महान आश्चर्यकर्म है । इसमें मानव जाति के प्रति परमेश्वर का प्रेम प्रदर्शित है । मनुष्य ने पाप के कारण खुद को परमेश्वर की संगति से अलग कर दिया । अदन की वाटिका में आदम और हव्वा ने पाप करने के पश्चात परमेश्वर ने उनसे उद्धारकर्ता की प्रतिज्ञा की ( उत्पत्ति ३ : १५ ) । जो कुछ खो गया था , उसे वापस लाना या उद्धार करना परमेश्वर की योजना थी ।
प्रभु यीशु मनुष्य को उसके पाप से बचने के लिए पृथ्वी पर आए । वह नम्रता में , मनुष्य की समानता में सेवक का स्वरूप धारण करके आए ( फिलिप्पियों २: ७ ) । वह इस संसार के पाप के लिए मरे , गाड़े गए और जी उठे ( १ कुरिन्थियों १५: ४ ), और स्वर्ग में चढ़ गए ( प्रेरितों १: ९ ) । वह पुनरुत्थान के पश्चात प्रेरितों और पांच सौ से भी अधिक विश्वासियों के द्वारा देखे गए । स्वर्ग में चले जाने के बाद दो स्वर्गदूतों ने शिष्यों से कहा कि वह उसी प्रकार लौट कर आएंगे , जिस प्रकार से वह गए हैं । केवल परमेश्वर जानते हैं कि प्रभु कब लौटेंगे । उनके लौटने की बात शाम में हो सकती है या मध्य रात्रि में या सुबह में या दोपहर में ( मार्कुस १३: ३५ ) । “ इसलिए तुम भी तैयार रहो ; क्योंकि जिस पल के विषय में तुम सोचते भी नहीं हो, उसी पल मनुष्य का पुत्र आ जाएगा “ (मत्ती २४:४४ ) ।
सच्चे परमेश्वर पृथ्वी के सृष्टिकर्त्ता हैं
हमलोग पवित्र बाइबल में पढ़ते हैं: “परमेश्वर ने मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार उत्पन्न किया, अपने ही स्वरूप के अनुसार परमेश्वर ने उसको उत्पन्न किया, नर और नारी करके उसने मनुष्यों की सृष्टि की; और परमेश्वर ने उनको आशीष दी” (उत्पत्ति १:२७- २८)। परमेश्वर ने मनुष्य को अपनी सृष्टि का सर्वोच्च और सुप्रतिष्ठित बनाया। “प्रभु परमेश्वर ने उसके नथनों में जीवन का श्वास फूंक दिया; और मनुष्य जीवित प्राणी बन गया” (उत्पत्ति २:७)। वह चाहते हैं कि मनुष्य उनकी सेवकाई करे, और उनकी स्तुति करे, जैसे लिखा है: “हे हमारे प्रभु और परमेश्वर! तू ही महिमा, आदर और सामर्थ के योग्य है; क्योंकि तू ही ने सब वस्तुएं रची हैं; वे तेरी ही इच्छा से थीं और सृजी गयीं” (प्रकाशित वाक्य ४:११)। इसलिए उसकी सृष्टि को उसकी आराधना करनी चाहिए और केवल उसकी ही; “अवश्य है कि आराधना करनेवाले आत्मा और सच्चाई से उसकी आराधना करें” (यूहन्ना ४:२४)।
एक समय था, जब इस संसार में कुछ भी नहीं था।न कोई मछली, न आकाश में कोई तारा, न कोई समुद्र और न ही सुन्दर-सुन्दर फूल।सब कुछ शून्य और अन्धकार पूर्ण था।किन्तु परमेश्वर था। परमेश्वर के पास एक सुन्दर योजना थी। उसने एक सुन्दर संसार के विषय में सोचा और जब उसने सोचा, तब ही उसने उसकी रचना कर डाली। उसने उसकी रचना शून्यता में से की। जब परमेडवर ने किसी भी वस्तु की रचना की, तो उसने मात्र इतना भर कहा, “हो जा” और वह वस्तु बन गयी।
प्रार्थना एक नम्र विनती है। जो यीशु मसीह का नाम में पिता परमेश्वर से करना है। स्वयं को स्वर्गीय प्रेमी पिता के सामने प्रकट करना ही प्रार्थना है। प्रार्थना में हमारी आत्मा शब्दों के द्दारा या हमारे मनों के विचार के द्दारा परमेश्वर से बाते करती है। परमेस्वर चाहता है कि हम उसके साथ बातें करें। हम उसके पास धन्यवाद के साथ या विनती के साथ या फिर निराशा के साथ आ सकते है।